Friday, April 18, 2008

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इन्तजार की भइ कोई हद होती है कितना और क्यों ? बेवजह इन्तजार रोज सुबह ही शुरु होती है इन्तजार से।आॅंख खुली ही कि अखबार वाले का इन्तजार फिर दूध वाले का फिर बच्चो के टैम्पो वाले का और तो और आजकल तो नित्य क्रिया के लिए भी इन्तजार करना पड़ता है कि वर्षा कि मम्मी कब बाहर आये और मैं प्रस्थान करुॅं।आप यह मत सोचियेगा कि हमारे लेखक महोदय कहीं विदेष यात्रा को जा रहें है आपको छोड़कर कहीं जा सकते है और हमारा गुजारा भी कहीं नहीं है अपने ही -हजयेल पाते है और अपनो के पास ही ठिकाना है अपनो का अन्यथा दर-ंउचयदर भटकेगें कोई दो रोटी को भी नहीं पूछेंगा और पूछ लिया और कही आप रोज चले आये क्योंकि आपको तो भूख है,इन्तजार है रोटी का कहाॅ ?कब! कैसे मिलेगी ?  mere baba

मेरे ब ा बा 

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