चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" href="http://www.chitthajagat.in/?claim=smqie309llex">
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" alt="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" src="http://www.chitthajagat.in/images/claim.gif" border=0>अरे भाई मिलेगी से तो काम चलेगा नही जब रोटी पेट मे पहुचेगी तब ही तो तृप्त होगे वैसे तो आजकल हर कोई लम्बी चौड़ी बाते कर देते है हमारे देश मे प्रजा तंत्र जो है बातो मे कुछ खर्च तो होता नही और पापुलर ही होते है ऐसे पापुलर होते होते कही नेता ही न बन जाए नेता बन गए तब तो मजा ही आजाएगा जो आज रोटी को तरस रहे है उन्हें चुपरी तो मिलेगी ही साथ ही साथ सात पुस्तो का भी इंतजाम हो जाएगा इसी को कहते है कुदरत कब?कहाँ ?कैसे?मिल जाए यह कुदरत भी अजीब है जो लोग रातदिन मेहनत मजदूरी मे रत रहकर अपने बच्चो का पेट पालकर गुजरबसर करना चाहतेहै उन्हें तो दो वक्त की रोटी नही मिलती और जो हमारे आश्रय पर हमारे ही प्रतिनिधि बन कर संसद मे पहुचते है वे मौज उडाते है इस विषय पर हमको जागरूक होने की जरूरत है यदि यही क्रम चलता रहा तो वह दिन दूर नही जब हम पर अपनी ही रोटी होगी पर हम उसको नही खा सकेगे हमे जागरूक के सही अर्थ को चरितार्थ करना है जो हमारे पूर्वजो ने हमको जगाया था और हम जागे थे परन्तु हम जाग कर रुक गए और इस माया मे भटक गए और हमारी पहली प्राथिमिकता धन,और यश हो गई जो हमारी सबसे बडी भूल है माया महा ठगनी जग जानी जानते हुए भी हम भ्रमित हो गए है उस भ्रम को दूर कीजिये और जानिए की सबअपने मे ही मद मस्त है जाग कर रुकिए मत उस तरफ ही चलिए जिस तरफ हमारे पूर्वज वतन के लिए चल दिए थे आज भी वही जरुरत है हम भी जागरूक के सही अर्थ को जाणे और जागरूक रहे और न मालूम जिस का इंतजार है वह कब कैसे कहाँ ?मिल जाए !
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